Spiritual establishment day

सच्चा सौदा सुख दा राह…
72वें रूहानी स्थापना दिवस (29 अप्रैल) पर विशेष
सच्चा सौदा यानी ‘सच’ मालिक, अल्लाह, वाहेगुरु, राम, गॉड, खुदा, रब्ब और ‘सौदा’ उस परमपिता परमात्मा, मालिक का नाम जपना, भक्ति-इबादत करना और बदले में कुछ भी दान, चढ़ावा आदि नहीं देना ही ‘सच्चा सौदा’ है। ईश्वर, अल्लाह, राम की सच्चाई का नाम ही सच्चा सौदा है। परमपिता परमात्मा की ऐसी भक्ति, जिसमें कुछ भी देना नहीं पड़ता। सच्चा सौदा देता है,लेता किसी से कुछ भी नहीं है। ना दान, न चढ़ावा, न किसी के पांव दबाना, न मत्था टिकाई और न ही कोई पाखंड रचना। ‘राम-नाम जपना, पराया माल कभी न तकना’। यह सच्चाई है सच्चा सौदा की।

पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज, जिन्होंने यह सच्चा सौदा बनाया, सच्चा सौदा की स्थापना की है, उन्होंने दुनिया को अव्वल दर्जे की सीख दी है। बेपरवाह सच्चे साईं जी ने फरमाया कि ‘अपना राम जपना, अपने राम की गंढ कपना। पराया माल कभी न तक्कना।’ अपना राम अर्थात् जन्म-मरण की फाही मुकाने वाला वो जिंदा राम है। वो मोया राम नहीं है। ‘गोविंद मेरा सद बोलंता। जब बुलाओ बोलेगा, खटखटाओ, दरवाजा (सच्ची दरगाह) खुलेगा। जिस समय और जहां भी कोई उसे याद करता है, खाते-पीते, सोते-जागते, काम-धंधा करते, चलते, लेटके, बैठके, मालिक सच्चे साईं मस्ताना जी महाराज ने तो यहां तक भी कहा है कि टट्टी-पेशाब (रफा-हाजत) करते हुए भी अगर याद आती है, क्योंकि राम-नाम कभी मैला नहीं होता, वह वहां पर भी उस जीव को अपने नूरे- जलाल की खुशियों से मालामाल कर देता है। उसका रहमो-करम हर जगह और हर समय बरसता रहता है।

एक सूफी फकीर शाह हुसैन जी ने भी यही फरमाया है- ‘शाह हुसैन गधा, जिस हंगदेयां अल्लाह लद्धा’। है कोई इससे आसान मार्ग? है कोई इससे सस्ता सौदा? ‘हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा आवे’ इस हकीकत को देखना है तो आईए सच्चा सौदा में। न पहरावा बदलना, न कोई धर्म परिवर्तन करना, यहां पर वह कुछ मिलेगा, जिसकी कल्पना भी नहीं हो सकती।

परिचय:

पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने तहसील गंधेय की रियासत कलायत, बिलोचिस्तान के गांव कोटड़ा (पाकिस्तान) में जीवोद्धार के लिए सृष्टि पर अवतार धारण किया। आप जी बिलोचिस्तान से थे इसलिए आप जी ‘मस्ताना बिलोचिस्तानी’ के नाम से मशहूर हुए। आप जी के पूजनीय मुर्शिदे-कामिल हजूर बाबा सावण सिंह जी महाराज आप जी को मस्ताना शाह बिलोचिस्तानी ही कहा करते थे। ईश्वरीय कानून, रूहानियत की मर्यादा अनुसार आप जी ने पूजनीय हजूर बाबा सावण सिंह जी महाराज से नाम दीक्षा के द्वारा अपने अल्लाह, राम, परमेश्वर को अपने गुरु मुर्शिदे-कामिल के रूप में पाया। आप जी ने अपने सतगुरु के ईश्वरीय प्यार, दृढ़ विश्वास से अपने मुर्शिदे-कामिल को इतना मोहित कर लिया कि पूज्य बाबा जी आप जी के पीछे-पीछे (जब आपजी अपने मुर्शिद के प्यार में सच्चा मुजरा किया करते) ऐसे फिरते, जैसे गाय अपने बछड़े के मोह में फिरती है।

और साथ-साथ में पावन वचनों व दया-मेहर, रहमत की बौछारें आपजी पर करते कि जा मस्ताना, तुझे अंदर वाला राम दिया, जो तुम्हारे सब काम करेगा। जा मस्ताना, हमने तुझे अपना स्वरूप भी दिया। हम हमेशा तुम्हारे साथ हैं, तुझे ऐसा सच का सौदा दिया, जो कभी खुटेगा नहीं। पूज्य बाबा जी ने आप जी के लिए अपनी बख्शिशों के जो वचन किए, इतिहास में आज तक शायद ही कोई मिसाल मिलती हो कि ‘जा मस्ताना, तुझे बागड़ का बादशाह बनाया। जा बागड़ को तार। बागड़ तुम्हारे सुपुर्द किया। कुटिया, डेरा बना। दुनिया को राम का नाम जपा। जिसको भी नाम देगा इक लत इत्थे, ते दूजी सचखंड विच। उसकी रूह सीधे सचखंड में होगी।

वह कभी जन्म-मरण में नहीं भटकेगी।’
दुनिया में इंसानियत की भलाई के लिए, हम सबके लिए पूज्य साईं जी ने अपने मुर्शिदे-कामिल बाबा सावण शाह जी महाराज की इन्हीं रूहानी बख्शिशों में ‘धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ नारा भी मंजूर करवाया। ‘मस्ताना शाह, तुम्हारा ‘धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ दोनों जहानों में मंजूर किया।’ नारा भी कोई ऐसा-वैसा नहीं, सच्चे दिल से जिसने भी कभी, और कहीं भी लगाया नारे में इतनी जबरदस्त बख्शिश है कि नारे ने उसे मौत के मुंह से ऐसे निकाल लिया, जैसे मक्खन से बाल निकालते हैं और जरा भी तकलीफ महसूस नहीं होने दी।

अनेकों उदाहरण मौजूद हैं, जो इस सच्चाई से रूबरू करवाते हैं और यह भी बख्शिश रूप में प्राप्त किया कि जो जीव वचनों पर कायम है, तीनों वचनों (अंडा-मांस नहीं खाना, शराब नहीं पीना, पराई स्त्री को अपनी माता-बहन मानना और स्त्री ने पर-पुरुष को अपना पिता-भाई समझना है) पर कायम है और थोड़ा-बहुत सुमिरन करता है, दृढ़ विश्वास है, अंदर-बाहर से उसे कभी हाथ फैलाना न पड़े। यह बेपरवाही वचन आज भी ज्यों के त्यों परवान हैं।

शुभ स्थापना:

शाह मस्ताना जी महाराज ने अपने पीरो, मुर्शिदे-कामिल हजूर बाबा सावण शाह जी महाराज की बख्शीशों के अनुरूप 29 अप्रैल 1948 को सरसा के नजदीक एक वीरान-सी जगह पर एक छोटी-सी कुटिया बनाई। बेपरवाह जी ने उस कुटिया का नामकरण सच्चा सौदा के नाम से किया। ‘सच’ मतलब जैसा कि पीछे बताया गया है, अल्लाह, वाहेगुरु, राम, गॉड, और ‘सौदा’ उसी सच्चे खुदा, रब्ब, परमपिता परमात्मा का नाम जपना, उस सच की भक्ति-इबादत करना ही सच्चा सौदा है। पूज्य साईं जी ने अपनी उस कुटिया में यही सच्चा सौदा करना शुरू किया और आज जिसकी महक, राम-नाम, भक्ति की खुशबू चारों दिशाओं में ही नहीं, बल्कि सभी महाद्वीपों में, दसों दिशाओं में सच्चा सौदा की महक महसूस की जा रही है। सच्चा सौदा का नाम पूरे विश्व में गूंज रहा है।

बेपरवाह साईं जी के वचन भी हैं ‘ऐथे लेहंदा झुकेगा, चढ़दा झुकेगा, झुकेगी दुनिया सारी, कुल आलम इत्थे झुकेगा’। चाहे यूरोपियन देश हैं या अरेबियन, या पश्चिमी मुल्क हैं, दुनिया के कोने-कोने में डेरा सच्चा सौदा के श्रद्धालु सच्चा सौदा की पावन शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। डेरा सच्चा सौदा के 134 मानवता भलाई कार्यों को चला रहे हैं।

दूसरे शब्दों में पूज्य बेपरवाह जी का यह सच्चा सौदा रूपी नन्हा-सा पौधा फैल कर आज इतना बड़ा बरगद का पेड़ (वटवृक्ष) बन गया है, जो पूरी दुनिया को अपने पावन आंचल में संजोए हुए हैं। चाहे कोई किसी भी धर्म, जाति का इंसान है, हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और चाहे किसी भी धर्म को मानने वाला है और कोई भी है अमीर या गरीब, राजा या रंक, सबके लिए ये सांझा दरबार है। यहां सबका हार्दिक स्वागत है।

साईं जी ने ऐसा सर्वधर्म प्रिय, सर्वधर्म संगम बनाया है, यहां पर सभी धर्मों के लोग एक ही जगह पर इकट्ठे बैठकर अपने-अपने धर्म, ईष्ट के अनुसार अल्लाह, मालिक का नाम ले सकते हैं। भक्ति-इबादत इकट्ठे बैठकर कर सकते हैं। अर्थात् बेपरवाह जी का यह सच्चा सौदा ही एक ऐसा दर है, जहां हर धर्म के लोग बिना झिझक, बिना किसी संकोच के राम-नाम की भक्ति में इकट्ठे बैठते हैं। यही इस दरबार की विशेषता है और यही यहां की हकीकत है।

डेरा सच्चा सौदा को स्थापित हुए आज 72 साल हो चुके हैं। पूजनीय मौजूदा गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पावन मार्गदर्शन, डॉ. एमएसजी की पावन रहनुमाई में यह दिन डेरा सच्चा सौदा में ‘रूहानी स्थापना दिवस’ के नाम से बहुत बड़े भंडारे के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। रूहानियत व इंसानियत का संगम ये डेरा सच्चा सौदा पूज्य गुरु जी की पाक-पवित्र प्रेरणा के अनुरूप दिन-दोगुनी, रात-चौगुनी दिन-रात तरक्की के मार्ग पर अग्रसर है।

‘साईं जी, आपके बाद यहां क्या बनेगा?’, यह सवाल सन् 1958 में एक दिन प्रेमी खेमामल आदि ने पूज्य बेपरवाह जी से किया। बेपरवाह जी आगे चलते-चलते एकदम रुक गए और कहा कि खेमा! तेरी बात हमारी समझ में नहीं आई! खेमा जी ने अपने अंदर के भ्रम को प्रकट करते हुए विनती की, साईं जी, आप जी के चोला बदलने पर यहां पूजा का स्थान न बन जाए! लोग आएं, माथा टेकें, चढ़ावा चढ़ाएं और मन्नतें लेकर चले जाएं! इतना सुनते ही बेपरवाह वाली दो जहान ने जोश में कड़क कर फरमाया ‘खेमा! कितने वर्षों से तू हमारे साथ रहता है।

तूने हमारे को आदमी ही समझा है! यह जो सच्चा सौदा बना है, यह किसी आदमी ने नहीं बनाया! यह खुद-खुदा, हमारे गुरु, पीरो-मुर्शिद सावण शाह जी के हुक्म से बना है।

जब तक धरती-आसमान रहेगा,

सच्चे सौदे की तरफ कोई उंगली नहीं उठा सकेगा।’
‘‘सच्चा सौदा सुख दा राह,

सब बंधनां तों पा छुटकारा मिलदा सुख दा साह।।’’

डेरा सच्चा सौदा के 72वें रूहानी स्थापना दिवस की समस्त साध-संगत को बहुत-बहुत बधाई हो जी। मुबारकां! मुबारकां!!

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