Magical Pangong Lake - Sachi Shiksha

लेह से करीब 225 किलोमीटर दूर समुद्र तल से 14272 फुट की ऊंचाई पर स्थित करिश्माई झील पेंगोंग त्सो की छटा देखते ही बनती है। इसकी खूबसूरती ने सदियों से जहां देश-विदेश के वैज्ञानिकों को अपनी ओर आकर्षित किया, वहीं फिल्मों में यहां की लोकेशन आते ही सैलानियों की आवाजाही बहुत बढ़ गई, लेकिन फिलहाल चीन के साथ विवाद के कारण यह झील सुर्खियों में है, क्योंकि इसी झील के पास से शुरू हुआ था तनाव। कोरोना वायरस के चलते हालांकि लोग घरों तक सिमटे हुए हैं, लेकिन जैसे ही मौसम के साथ वातावरण सही हो, तो जैसे ही भ्रमण का मन करे तो पेंगोंगे सरहद पर बनी इस झील को देखने अवश्य जाइयेगा। आपको सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण इस करिश्माई झील का इतिहास-भूगोल बताते हैं।

पेंगोंग का सूर्यास्त और सूर्योदय दोनों की छटा निराली है। शाम को जो झील गहरे नीले रंग में दिखती है, अल सुबह ब्राउन, ग्रीन, रेड और फिर दोपहर से शाम तक नीले रंग की नजर आती है। फिल्म थ्री इडियट्स 2009 में रिलीज हुई थी। उसकी एक लोकेशन थी, लद्दाख की पेंगोंग त्सो झील। बाद में यह स्थान इतना लोकप्रिय हुआ कि इसे निहारने के लिए लोगों का मेला लग गया। इससे पहले 2006 में अंग्रेजी फिल्म द फॉल और 2008 में समीर कार्निक की फिल्म ‘हीरोस’ के कुछ शॉट्स पेंगोंग की लोकेशन पर लिये गये थे। थ्री इडियट्स से 11 साल पहले मणिरत्नम ने फिल्म ‘तूं ही तूं सतरंगी रे’ गाने का कुछ हिस्सा पेंगोंग झील पर फिल्माया गया था।

उस समय किसी ने जानने की इच्छा नहीं जताई कि यह कौन सी लोकेशन है? मगर, थ्री इडियट्स के बहाने लद्दाख टूरिज्म ने भी पेंगोंग त्सो झील की मार्केटिंग खूब की। पेंगोंग की इसी लोकेशन पर लाल, नीली, हरी प्लास्टिक वाले तीन बकेट चेयर, पीले रंग का स्कूटर, फोटो अपॉरचुनिटी के वास्ते जरूर रखे मिलते हैं। मगर, उससे पहले पेंगोंग के लिए जाने का प्लान लेह से ही करना होता है।

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पेंगोंग नियंत्रण रेखा से लगा इलाका है, यहां कदम रखने के लिए परमिट चाहिए, जिसके लिए लेह स्थित डीसी आॅफिस अधिकृत है। लेह के जिस होटल में आप ठहरते हैं, उनके लोग पहले से परमिट का इंतजाम कुछ अतिरिक्त शुल्क लेकर कर देते हैं, या फिर लेह में बैठे टूरिस्ट एजेंट। खुद जाकर कराना हो, तो 500 रुपये और रोज का 20 रुपये अतिरिक्त शुल्क देना होता है। यानी, तीन दिन के लिए 560 रुपये। लेह के डीसी आॅफिस में दो-एक घंटे में परमिट वाला काम हो जाता है। जम्मू-कश्मीर के जो निवासी हैं, अथवा 12 साल से कम उम्र के बच्चों के वास्ते इनर लाइन परमिट (आईएलपी) या लद्दाख प्रोटेक्टेड एरिया परमिट (पीएपी) की जरूरत नहीं होती।

लेह का डीसी आॅफिस अफगानिस्तान, म्यांमार, चीन, पाकिस्तान और श्रीलंका के नागरिकों को आईएलपी देने के लिए अधिकृत नहीं है। उसके लिए दिल्ली में गृह मंत्रालय से अनुमति लेनी होती है। डिप्लोमेटिक पासपोर्ट होल्डर विदेशी या यूएन के सदस्यों को पेंगोंग जाना हो तो उन्हें विदेश मंत्रालय ‘विशेष इनर लाइन परमिट’ जारी करता है।

छटा निराली

सुबह आठ-नौ बजे निकलें, मगर यह नहीं भूलें कि जितने दिन पेंगोंग रहना है, उसके मुताबिक खाने-पीने की वस्तुएं लेह से ही रख लें। रास्ते में शे मठ, छांगला पास, दुरबुक, लुकुंग को देखते-निहारते पेंगोंग पहुंचते-पहुंचते सूर्यास्त का समय लगभग हो जाता है। कुछ पर्यटक नुब्रा घाटी से वारी ला दर्रा होते हुए पेंगोंग निकल जाते हैं। यह रास्ता थोड़ा लंबा, 274 किलोमीटर है। अगर आप चार चक्के वाली गाड़ी से हैं, डीजल-पेट्रोल से टंकी फुल करा लीजिए। मोटर साइकिल सवारों को भी अलग से स्टॉक लेकर चलने की सलाह दी जाती है।

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समुद्र तल से 14 हजार 272 फुट की ऊंचाई पर ऐसा कुदरती करिश्मा दुनिया की कम ही लोकेशन पर दिखता है। शायद इससे अभिभूत होकर तिब्बतियों ने इसका नाम पेंगोंग (जादुई) त्सो यानी ‘झील’ रखा। हल्का खारा जल होने के बावजूद, नवंबर से मार्च तक पेंगोंग का पानी ठोस बर्फ में बदल जाता है। ऐसी फिजां में जाने का अवसर मिले तो आप झील पर चल सकते हैं। घनघोर सर्दियों में यहां आइस स्केटिंग खेली जाती है।

ग्लेशियर से बनी झील, हुए कई शोध

पेंगोंग, ग्लेशियर से उत्पन्न झील है। इस बारे में यूनिवर्सिटी आॅफ शिकागो प्रेस जर्नल्स ने अक्तूबर-नवंबर 1906 के अंक में एक शोध पत्र प्रकाशित किया था। पेंगोंग के चारों तरफ जितने भी ग्लेशियर हैं, उनका ब्योरा एल्सवर्थ हंटिग्टन ने अपने शोधपत्र में दिया था। सवा सौ साल पुराने दस्तावेजी प्रमाण से इसका संकेत मिलता है कि हिमालय के इस सामरिक महत्व वाले क्षेत्र में अमेरिकन दिलचस्पी कितनी रही है। जैव विविधता पर काम करने वाले ब्रिटिश जल विज्ञानी हटचिंसन ने 1933 से 1936 के बीच पेंगोंग के पानी पर काफी शोध किया, जो उस समय के जर्नल्स में प्रकाशित हुए। बाद के दिनों में भी इस इलाके में जैव विविधता पर काफी शोध हुए, जिससे एक बात साफ हुई कि छांगथांग पठार के बीच कटोरे की तरह निकल आयी पेंगोंग झील के चारों ओर ग्लेशियर का पानी उसकी जल संपदा को बनाये रखते हैं।

छांगथांग पठार में फिरोजा पत्थर बहुतायत में मिलते हैं, जिसे लद्दाखी अपने आभूषणों, टोपी और मूर्तिकला में इस्तेमाल करते हैं। छांगथांग पठार 1600 किलोमीटर तक के विस्तार में है, जिसका बड़ा हिस्सा उत्तर-पश्चिम तिब्बत के छिंगहाई तक फैला हुआ है। छांगथांग पठार के गर्भ से न सिर्फ पेंगोंग झील की उत्पत्ति हुई है, अपितु दो और झील हैं। 26 किलोमीटर लंबाई वाली त्सो-मोरिरी, और 22 किलोमीटर लंबी त्सोकर भी छांगथांग पठार ने हमें प्रदान की है। ये दोनों लद्दाख में हैं। 134 किलोमीटर लंबी पेंगोंग झील की अधिकतम चैड़ाई पांच किलोमीटर है। इसका 45 किलोमीटर पश्चिमी हिस्सा भारत के नियंत्रण में है, और बाकी 89 किलोमीटर तिब्बत में।

लेह में कुछ अन्य पर्यटक स्थल

चादर ट्रैक

चादर ट्रैक लेह-लद्दाख के कठिन ट्रैक में से है। इस ट्रैक को चादर ट्रैक इसलिए कहा जाता है, क्योंकि जांस्कर नदी सर्दियों में बर्फ की सफेद चादर में बदल जाती है। चदर फ्रोजन रिवर ट्रेक दूसरे ट्रेकिंग वाली जगह से अलग है।

मैग्नेटिक हिल

लद्दाख के मैग्नेटिक हिल को ग्रेविटी हिल कहा जाता है, जहां वाहन गुरुत्वाकर्षण बल की वजह से अपने आप पहाड़ी की तरफ बढ़ते हैं। आॅप्टिकल भ्रम या वास्तविकता, लद्दाख में मेगनेटिक हिल का रहस्य पर्यटकों को आकर्षित करता है।

खारदुंग ला पास

खारदुंग ला पास को लद्दाख क्षेत्र में नुब्रा और श्योक घाटियों के प्रवेश द्वार के रूप में जाना जाता है। यह सियाचिन ग्लेशियर में महत्वपूर्ण स्ट्रेटेजिक पास है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता, हवा यह महसूस करवाती है जैसे कि आप दुनिया के शीर्ष पर हैं।

लेह पैलेस

लेह पैलेस जिसे लचकन पालकर के नाम से जाना जाता है। यह लेह-लद्दाख का प्रमुख ऐतिहासिक स्थल है। देश की ऐतिहासिक समृद्ध संपदाओं में से एक है। इस आकर्षक संरचना को 17 वीं शताब्दी में राजा सेंगगे नामग्याल ने शाही महल के रूप में बनवाया था। इस हवेली में राजा और उनका पूरा राजसी परिवार रहता था। इस महल की नौ मंजिलें हैं। यह अपने समय में ऊंची इमारत थी।

शांति स्तूप

शांति स्तूप लेह लद्दाख का धार्मिक स्थल है जो बौद्ध सफेद गुंबद वाला स्तूप है। शांति स्तूप का निर्माण जापानी बौद्ध भिक्षु ग्योम्यो नाकामुरा ने किया था। 14 वें दलाई लामा द्वारा खुद को विस्थापित किया गया था। यह स्तूप अपने आधार पर बुद्ध के अवशेष रखता है और यहां के आसपास के परिदृश्य का मनोरम दृश्य प्रदान करता है। यहां वैकल्पिक रूप से आप लेह शहर से 500 सीढ़ियां चढ़कर स्तूप तक पहुंच सकते हैं।

फुगताल मठ

फुकताल या फुगताल मठ एक अलग मठ है जो लद्दाख में जंस्कार क्षेत्र के दक्षिणी और पूर्वी भाग में स्थित है। यह उन उपदेशकों और विद्वानों की जगह है जो प्राचीन काल में यहां रहते थे। यह जगह ध्यान करने, शिक्षा, सीखने और एन्जॉय करने की जगह थी। झुकरी बोली में फुक का अर्थ है गुफ और ताल का अर्थ है आराम होता है। यह 2250 साल पुराना मठ एकमात्र ऐसा मठ है जहां पैदल यात्रा करके पहुंचा जा सकता है।

त्यो मोरीरी झील

त्यो मोरीरी झील पैंगोंग झील की जुड़वां झील है जो चांगटांग वन्यजीव अभयारण्य के अंदर स्थित है। यह झील पर्यटकों को सुंदर वातावरण और शांति प्रदान करती है। इस झील का जल निकाय उत्तर से दक्षिण तक लगभग 28 किमी और गहराई में लगभग 100 फीट है।

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