मैच्योर होने के मायने

मैच्योर होने के मायने
न्यूज चैनल पर सार्थक बहस की बजाय वक्ताओं का एक-दूसरे पर चिल्लाना, सड़क पर वाहन चालकों का हिंसक रवैय्या और सार्वजनिक जगहों पर शर्मसार करने वाली घटनाओं से हमें रोजाना रूबरू होना पड़ता है।

ऐसी स्थिति में हमारे मन में यही प्रश्न उठता है कि लोग इतनी अपरिपक्व सोच क्यों रखते हैं? दरअसल परिपक्वता और आत्मबोध हासिल करने की जिम्मेदारी हमारी अपनी है। जीवन के अनुभवों से सीखने, बदलाव के लिए तैयार रहने और विचारों के मतभेद का सम्मान करने का लचीलापन आपको मैच्योर लोगों की जमात का हिस्सा बना सकता है।

20, 40 या 70 साल, आपको क्या लगता है कि इनमें से कौन सी उम्र में एक व्यक्ति मैच्योर या परिपक्व कहलाता है? असल में परिपक्वता का उम्र से कोई लेना-देना नहीं होता। यह पूरी तरह से आप पर निर्भर है कि आप कब मैच्योर होना चाहते हैं।

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दूसरों को दोष न दें:

अपनी समस्याओं का दोष किसी और को देना बचपना होगा। खुद को किसी मुश्किल परिस्थिति में धकेलने की जिम्मेदारी अपने पेरेंट्स, टीचर, दोस्त या किसी और पर थोप कर आप उससे बच नहीं सकते। अपनी गलती को स्वीकार करना, उनसे सीख लेना और विफलता से न डरना मैच्योर होने की पहचान है।

सहनशील बनें:

परिपक्व होने का मतलब है दुनिया को उसके असल रूप में स्वीकारना और विरोधाभासों को सहन करना। जब आप मानसिक रूप से परिपक्व हो जाते हैं, तो दुनिया और खुद के प्रति आपकी समझ विकसित हो जाती है। सहनशीलता आपको विपरीत परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढालने की शक्ति देती है।

फीडबैक लेते रहें:

मैच्योर लोग आगे बढ़ते हुए आलोचना को भी महत्त्व देते हैं, चाहे वह नकारात्मक हो या सकारात्मक। इसलिए इससे भागने की बजाय, इसे सुधार का जरिया बनाएं और इसके लिए धन्यवाद भी दें। यही नहीं, आलोचना होने पर आगे बढ़ कर सलाह मांगें और यह पूछें कि बेहतर बनने के लिए क्या करना होगा!

खुद पर हंसना सीखें:

हंसने की वजह तलाश लेना बुरी से बुरी स्थिति में भी दिमाग को शांत रखने का सबसे अच्छा तरीका है। जब आप साधारण चीजों में भी हास्य देख पाते हैं, तो आप परेशानियों को पीछे छोड़ आगे बढ़ने में ज्यादा सक्षम होते हैं। जो हो चुका, उसके दु:ख में डूबे रहने की बजाय, हंसी में भुला दें और फिर से कोशिश करें।

खुद पर हो फोकस:

दूसरे लोग क्या कहते हैं, क्या करते हैं और क्या सोचते हैं, इससे आपका कोई ताल्लुक न होने पर भी अगर आप विचलित हो जाते हैं, तो यह समझदारी नहीं है। अगर आप मैच्योर होना चाहते हैं, तो दूसरों की बजाय, जो आपके पास है, उस पर फोकस करें। वही करें, जो आपको अपने लिए और अपनों के लिए करना है, जिसमें आलोचना और रचनात्मकता नहीं है, तो उस पर ध्यान न दें। नफरत या तुलना को भूल जाएं। बस खुद पर फोकस करें।

ज्यादा न सोचें:

किसी भी परिस्थिति का बार-बार अवलोकन करना आपको आसानी से विचलित कर सकता है। ईमेल, मैसेज, टेक्स्ट और ट्वीट की गहराई में न डूबें। ऐसा करके आपकी उलझनें बढ़ जाएंगी। समस्याओं को सुलझाने के लिए अलग-अलग तरीके आजमाने की बजाय क्रिएटिव और गहन सोच का इस्तेमाल करना समझदारी होगी।

डटे रहें:

मांग पूरी न होने पर बच्चे पैर पटक कर रो देते हैं। उन्हें लगता है कि गुस्सा दिखाने से उनकी बात मान ली जाएगी, पूरी नहीं हो शायद कुछ हद तक! वहीं वयस्क होने के नाते हमें पता है कि प्रगति के रास्ते में अस्वीकृति मिलने या समस्याएं खड़ी होने पर हार नहीं माननी चाहिए। भावनाओं पर काबू रखें और जो महत्त्वपूर्ण है, उस पर नजर बनाएं रखें। तुरंत आवेग में न आएं, दूर की सोचें।

लक्ष्य पर नजर रखें:

मैच्योर लोगों की कुछ उम्मीदें, सपने, महत्त्वाकांक्षाएं होती हैं, जो उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं। वहीं अपरिपक्व लोग दिल और दिमागी तौर पर आगे बढ़े बिना चीजें हासिल करना चाहते हैं। परिपक्व लोग खुद की बेहतरी पर समय का निवेश करते हुए समाज को बेहतर बनाने में भी अपना योगदान देते हैं, क्योंकि वे अपनी जिम्मेदारी समझते हैं।
– खुंजरि देवांगन

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