sports and exercise are important and better than health clubs - Sachi Shiksha

हेल्थ क्लबों से बेहतर हैं खेलकूद और व्यायाम
व्यायाम जीवन का एक जरूरी हिस्सा है। खेल-कूद तो बच्चों की पहचान है लेकिन अफसोस की बात है कि ये दोनों चीजें आजकल के रहन सहन का एक हिस्सा नहीं हैं।

आजकल व्यायाम और खेलकूद भी रईस लोगों का फैशन हो गया है। हां, मां बाप को यह अहसास है कि वे अपने बच्चों को खुले मैदान और खेलकूद का मौका नहीं दे सकते, इसलिये वे उन्हें महंगे हैल्थ क्लबों में भर्ती कर देते हैं और बच्चों को मजबूर किया जाता है कि वे वहां जाएं। यह बिलकुल गलत है।

व्यायाम करने का जो फायदा बच्चों को अपने साथियों के संग खेलते कूदते होता है, वह फायदा जबरदस्ती एक व्यायामशाला या हैल्थक्लब में भेजकर हो ही नहीं सकता। खेलकूद तो बचपन का हिस्सा है और यह सब बढ़ते बच्चों के जीवन का आम कार्य है। तो क्यों हम इसे एक काम की तरह बच्चों पर थोप रहे हैं?

यदि आप बच्चों का मानसिक तथा शारीरिक विकास चाहते हैं तो खेलकूद तथा व्यायाम उनके जीवन का अंग होना चाहिये। इन दोनों चीजों की आदत बचपन में ही बच्चों को होनी चाहिए। यदि आप बच्चों को शुरू से ही इन चीजों की आदत नहीं डालते तो आप उनके साथ इंसाफ नहीं कर रहे और इसकी शुरूआत आपसे ही होती है। यदि वे देखते हैं कि आप न तो सैर पर जाते हैं, न कहीं घूमने जाते हैं और केवल टेलीविजन देखते रहते हैं तो वे भी यही कुछ सीखते हैं।

आपको भी सैर करने की आदत डालनी चाहिये। क्यों न आप आज से ही शुरू करें? आपके घर के नजदीक कोई तो खुला मैदान या सैर करने की जगह होगी। आपको रोज कुछ समय खाली निकाल कर बच्चों के साथ वहां जाना चाहिये। यदि आपके बच्चे छोटे हैं तो उन्हें जरूर झूले इत्यादि पर खेलने दें। दूसरे बच्चों के साथ उन्हें खेलने भेजें जिससे वे भागदौड़ और अपने हमउम्र बच्चों के साथ खूब खेल सकें। इसके अतिरिक्त आपको भी उनके साथ पार्क में जाकर सैर करनी चाहिए।
बच्चों को साइकिल चलाने का, तैरने का और भागने का शौक डलवाएं और उन्हें बाजार के काम से पैदल भेजें। हमेशा अपने बच्चों को मोटरगाड़ी में घूमने की आदत न डालें।

व्यायाम का एक समय तय करें

यदि आप दोनों मां-बाप काम करते हैं और देर से लौटते हैं, तब भी यह जरूरी है कि आप कुछ समय तो उनके साथ बिताएं। चाय पीकर या फिर रात का भोजन जल्दी लेकर भी आप बच्चों के साथ सैर पर या पार्क में जा सकते हैं। सबसे जरूरी बात है कि आप बच्चों को दो घण्टे से अधिक टेलीविजन न देखने दें और इसका भी सही समय होना चाहिए। स्कूल के बाद उन्हें भोजन करके या तो आराम करना चाहिए या फिर गृहकार्य यदि ज्यादा है तो वह करके शाम को जरूर बाहर निकल जाना चाहिये, फिर चाहे वह दोस्तों के साथ सैर करने जायें, पार्क में खेलने या साइकिल चलाने या और कोई ऐसा कार्य करें जिससे उनका शारीरिक व मानसिक विकास हो।

स्कूल में बच्चों को खेलकूद में भाग लेने को प्रेरित करें। यदि घर के पास कोई क्र ीड़ा केन्द्र है जहां बास्केटबॉल, क्रि केट या कोई और खेल सिखाया जाता है तो बच्चों को वहां अवश्य भर्ती करें। इससे बच्चे न केवल किसी खेल को सही ढंग से सीख पाएंगे बल्कि वे अपनी सेहत का विकास भी करेंगे लेकिन एक बात का ध्यान रहे, कभी भी अपने बच्चों पर इस बात का जोर न डालें कि वे कौन सा खेल अपनाएं या क्या खेलें।

बच्चों को प्रेरित करें, जबरदस्ती नहीं

व्यायाम और खेलकूद के महत्व को समझते हुए कई शहरों में बड़े-बड़े मैदानों को खेलकूद के लिए बनाया जा रहा है जैसा कि मैंने मुम्बई के शिवाजी पार्क में देखा। वहां शाम को बूढ़े, जवान लोग और बच्चे सब आते हैं। मां-बाप सैर करते हैं और कई लोग वहां बच्चों को जुडो कराटे सिखाते हैं तो कुछ लोग बच्चों को क्रि केट की शिक्षा दे रहे हैं। एक कोने में नेट लगाकर बच्चे बास्केटबॉल सीख रहे हैं।

आजकल मुम्बई जैसे हर बड़े शहर में घर छोटे होते जा रहे हैं और शहरों में मैदानों की संख्या भी कम होती जा रही है इसलिए यह जरूरी हो गया है कि सरकार भी ऐसे मैदान या खुली जगहें बच्चों के खेलने के लिए बनाए। ध्यान में रहे कि सेहत खरीदी नहीं जा सकती। बच्चों को महंगी महंगी व्यायामशालाओं में भेजने से वे सेहतमंद नहीं हो जाएंगे। यदि वे स्वयं ही खेलकूद की आदत डालें और व्यायाम करना पसंद करें तो वे खुद अपने आप को फुर्तीला और तेजस्वी पाएंगे।
-अम्बिका

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