अकेलेपन का सम्मान करें।

अकेलेपन का सम्मान करें। प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तिगत जीवन होता है। उसका एकांत होता है, उसकी अपनी खुशियां और अपना अकेलापन होता है। पूरे दिन में कुछ समय उसके अपने निजी होते हैं या पूरे महीने में कुछ दिन उसकी निजी स्वतंत्रता के होते हैं।  जैसे-जैसे मनुष्य का विकास होता जाता है, ज्ञान, शिक्षा, औपचारिकता के दबाव में उसका मूल रूप खो जाता है। उसकी चंचलता, बाल सुलभ जिज्ञासा खत्म होती जाती है।

प्रत्येक पल उसे यह अनुभव होता है कि उसकी गतिविधियों को कोई देख रहा है, उसकी प्रत्येक गतिविधि का प्रभाव समाज पर पड़ रहा है जिसके परिणाम स्वरूप वह समस्त औपचारिकता का निर्वहन करता है जिसके चलते वह अपने मूल स्वरूप से लगातार दूर होता चला जाता है। यह तनाव का रूप धारण कर लेता है तथा यह तनाव आगे जाकर बीमारी में बदल जाता है।

अक्सर माता पिता अपने बच्चों के सामने बहुत सख्त या बहुत आदर्शवादी साबित करने के चक्कर में क्रूर हो जाते हैं। यह क्रूरता वह कभी कभी स्वयम् के साथ भी कर लेते हैं जहां उनका प्रेम,सद्भावनाएं, दया, आंसू, सहानुभूति सब ठोस हो जाती हैं और ऐसे लोगों के लिए कहा जाता है कि वह तो पत्थर दिल है। उसे किसी की भावनाओं से कोई मतलब नहीं। उसका एक मात्र कारण होता है कि लाख चाहने पर भी स्वयम् के साथ वह जी नहीं पाते हैं और जिसके चलते उनका मूल स्वरूप ‘बोन्साई’ या विकृत हो जाता है।

प्रत्येक व्यक्ति का अपना निजी जीवन होता है और वह किसी की ताक झांक उसमें बिलकुल पसंद नहीं करता है। उस समय की उसकी आजादी एकदम निजी होती है। ऐसे निजी क्षणों में वह सृजन करने की अभिलाषा रखता हो या किसी गीत को लिखने या गाने का मन कर रहा हो-ऐसे में उसको परेशान करना किसी प्रताड़ना से कम नहीं होता।  कुछ व्यक्ति बहुत ही अंतरमुखी होते हैं। वे बहुत कम लोगों से खुलते हैं। अक्सर उन्हें घमंडी मान लिया जाता है लेकिन ऐसा होता नहीं है। वे नहीं चाहते कि उनके एकाकीपन में कोई दूसरा या तीसरा प्रवेश करे।

बहुत से खुले दिल दिमाग के व्यक्ति अपनी बेवकूफियों की हंसी उड़वाने में संकोच नहीं करते। स्वयम् अपनी नालायकी या मूर्खता पर ठहाके लगाते हैं और कल की अपेक्षा आज वह अधिक समझदार हो गए- ऐसा वह मानते हैं। अक्सर वह बीमारियों से मुक्त भी रहते हैं लेकिन अक्सर ठहाके लगाने वाले के अंदर भी बहुत खालीपन होता है। एक अजीब सा वीराना भरा होता है जिसे बहुत कम लोग देख समझ पाते हैं।

यदि आपको लगता है कि पूरे दिन में कुछ समय मित्र, सहयोगी, पत्नी या पति अकेलापन चाहता है तो उसे अवश्य दें क्योंकि यह एकांत के बाद दूनी गति से आपके साथ जुड़ सकेगा। अक्सर अधिक शांति भी अशांति को जन्म देती है, इसलिए जितनी शांति की आवश्यकता होगी, मनुष्य उतनी ही ग्रहण कर पायेगा, उससे अधिक नहीं, जैसे नासिका से आक्सीजन शरीर उतनी ही ग्रहण करेगा जितनी आवश्यकता है लेकिन यदि हम व्यक्ति को उसका एकांतपन, अकेले क्षण नहीं देंगे तो उसका परिणाम उसकी चिड़चिड़ाहट के रूप में सामने प्रकट होगा क्योंकि यह अशांति उसके व्यक्तित्व का हिस्सा बन जायेगी। यदि आपका साथी या दोस्त अकेले में कुछ समय व्यतीत करता है तो उसे सहयोग दें।

हो सकता है कि वह रोए या आंसू बहाए जिसके चलते उसके मन के विकार बाहर आ जायें लेकिन अत्यधिक अकेला रहना, किसी से बात ही नहीं करना, गहरे अवसाद में डूबे होना, नशे की दवाइयों का सेवन करना यह बीमारी के लक्षण हैं तथा ऐसे मनोरोगी आत्महत्या जैसे कर्म में भी चले जाते हैं।  अपने व्यक्तिगत अनुभवों को बांटने के पूर्व विचार करें कि इसका प्रभाव आपके जीवन पर, परिवार की प्रतिष्ठा पर, समाज पर क्या पड़ेगा? इसलिए सोच समझ कर अपने निजी क्षणों को शेयर करें।

इसका सबसे आसान सुंदर तरीका है आप डायरी लिखने की आदत डालें। अच्छा बुरा सब लिखें। यदि एक वर्ष बाद आपको लगता है कि यह लिखा ठीक नहीं है तो उसे नष्ट कर दें या मनोरंजक लगता है तो अकेले क्षण को रोचक बनाने के लिए उसका अध्ययन करें-खूब खुश हों। दुखी व्यक्ति के साथ कोई खड़ा नहीं होता है।

खुश मिजाज हमेशा दोस्तों से घिरा रहता है। खुशियों बांटें, यह आपका लक्ष्य होना चाहिए। इसलिए आपका दोस्त-साथी कुछ समय के लिए अकेलापन चाहता है तो अवश्य दें। आपकी मित्रता प्रगाढ़ होगी तथा उसे प्रतीत होगा कि उसकी भावनाओं के आप सम्मान करते हैं। हो सकता है उस एकांत क्षण में किसी कालजयी कृति, संगीत का जन्म हो जाए। इसलिए अपने अकेलेपन का सम्मान करें और मित्रों को जीने की पूरी स्वतंत्रता दें- यह जीवन जीने की एक सार्थक पहल साबित होगी। -डा. गोपाल नारायण आवटे

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