सास लगे सखी सास का एक रूप यह भी

सास लगे सखी सास का एक रूप यह भी :

रश्मि आहूजा ने अपनी प्यारी बहू प्रीति से फोन पर जब वेलेंटाइन-डे पर कहा ‘विल यू बी माइ वेलेंटाइन’? (क्या तुम मेरी वेलेंटाइन बनोगी) ‘आॅफ कोर्स मां कम फ्रैंड’, बहू ने हंसते हुए जवाब दिया। ये थीं आज की मॉडर्न सास और बहू! दोनों की पटरी बैठ गई थी। हंसी मजाक करती वे अपना समय साथ-साथ खूब बढ़िया बितातीं। बहू दूसरे शहर में थी लेकिन सास

बहू का अपने-अपने पति के साथ आना जाना लगा ही रहता।
इन सास बहू का मेल मिलाप देखकर बहू की मां को अपना रिश्ता खतरे में आता नजर आने लगा था। सास समझदार थी। वह मां की भावनाओं को खूब समझती थी। उनसे जब समधन ने कहा कि प्रीति का झुकाव तो अब आप की तरफ ज्यादा हो गया है, उन्होंने बड़े धीरज से कहा- बहन जी, मां का दर्जा तो ईश्वर के बराबर होता है।

भला उनकी जगह कोई और ले सकता है क्या! सुनकर मां को तसल्ली हो गई।
प्रीति की तरह हर बहू की सास के साथ पटरी नहीं बैठती। कहीं ईगो क्लैश करते हैं और कहीं काम को लेकर रोना है तो कहीं रुपये-पैसे आदि खर्चे को लेकर मनमुटाव रहता है!

ऐसी कोई प्रॉब्लम नहीं होती कि जिसका समाधान न हो। बस दृढ़ इच्छा होनी चाहिए। कुछ विवेक और समझदारी से समस्या को सुलझाया जा सकता है।

बहुएं अपने फर्ज से मुंह न मोड़ें, यह सच है कि उनकी व्यस्तताएं आज बेहद बढ़ गई हैं। घर बाहर की दोहरी जिम्मेदारी निभा रही हैं वे। ऐसे में वक्त की कमी तो रहती ही है! पति-देव भी मसरूफियत के चलते घर चलाने में उनकी ज्यादा मदद नहीं कर पाते हैं। फोन, पानी, बिजली के बिल जमा करने जैसे काम भी आज शहरों में वे ही करती हैं।

लेकिन अगर सास शारीरिक रूप से फिट हैं तो उनकी मदद लेने में हर्ज नहीं बशर्ते वो ये करके खुश हों। आम तौर पर ये सासें गृहकार्यों में पूरी मदद करती हैं। उनके पास अनुभवों का खजाना है। उन्हें काम अच्छे ढंग से निपटाना आता है। बहुओं को चाहिए कि वे सास की भावनाओं का ख्याल रखें। वे भी घर की मालकिन हैं, उनके ऐसा महसूस करने में बाधक न बनें।

उन्हें क्या बात खुशी देती है, यह ध्यान रखें। उनकी राय को महत्त्व देते हुए उनसे राय-मशवरा भी लेती रहें, उन्हें अच्छा लगेगा। कभी-कभी शॉपिंग, पिक्चर या आउटिंग का प्रोग्राम उनके साथ भी बनायें या फिर किसी धार्मिक स्थल एंपोरियम, प्रदर्शनी, कला प्रदर्शनी, पर उन्हें ले जाएं, इससे अपनत्व बढ़ेगा। रोजमर्रा की एक-सी जिंदगी की बोरियत आपके साथ उनकी भी दूर होगी।

इस रिश्ते को निभाने के लिये इसे समझना बेहद जरूरी है। होता यह है कि बहुएं सास के प्रति पूर्वाग्रह लिए ससुराल आती हैं। शुरूआत ही जब गलत हो तो सब कुछ बिगड़ता ही नजर आता है। दुश्मन बनकर नहीं, दोस्ती का जज्बा मन में लेकर, पॉजिटिव थिंकिंग के साथ ससुराल आयें, सब गोटियां फिट बैठेंगी। सुर से सुर और तरंग से तरंग मिलेंगी। एक ही वाइबरेशन पर होंगी आप और आपकी सखी-मां, यानि सास।

आज दोस्ती के रिश्ते पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है, वो इसलिए कि इस रिश्ते में खुलापन है, स्पेस है और कमिटमेंट जैसी बंदिशें नहीं हैं। केवल मन का बंधन ही है जो रिश्ते की जान होता है, जिस पर लांग-लास्टिंग रिश्ता टिका होता है।
टैक्नॉलॉजी के इस युग में आई-क्यू को इतनी ज्यादा अहमियत दी जाने लगी थी कि इ. क्यू. (इमोशनल कोशियंट) की अहमियत बिलकुल खत्म हो चली थी। जब इसके भयानक परिणाम सामने आने लगे, भाव जीवन का उद्देश्य ही जैसे दांव पर लग गया, तब कुछ बुद्धिजीवी लोगों ने इसके फेवर में आवाज उठानी शुरू की।

इस टेन्ड का खामियाजा सास बहू के रिश्ते को भी उठाना पड़ा। सास-बहू लड़ती पहले भी थीं, मगर लड़ाई के बावजूद उनमें प्यार भी रहता था और उनमें जुड़ाव व अपनत्व भी कम न था। आज वही जुड़ाव, अपनत्व बहुत कम हो गया है। कारण है जीवन में अन्य डायवर्जन अर्थात् महत्वाकांक्षाएं। दूसरे शब्दों में, अपने को ही सुप्रीम मानकर चलने का रूझान और रिश्तों के प्रति उदासीनता।

आज जब समाज में तेजी से बदलाव आया है, सास-बहू का रिश्ता भी इस बदलाव के कारण एक कनफ्यूजन से गुजर रहा है। आज जब सास-बहू दोनों पढ़ी लिखी हैं, उन्हें इस रिश्ते को एक नया रूप देना चाहिए, जिसमें प्रतिद्वंद्विता नहीं बल्कि सहभागिता हो। बहू जब सास को मन से सखी का दर्जा देंगी और सास भी पूरा सहयोग देते हुए हुक्म चलाने या रोक-टोक करने की आदत छोड़ बहू को बराबरी का दर्जा देते हुए रिश्ता निभाने का प्रयत्न करें, तो परिवार टूटेंगे या बिखरेंगे नहीं और साथ ही सीनियर सिटीजंस असुरक्षा अनचाहे होने जैसी डिप्रेसिंग बातों से दुखी नहीं रहेंगे।

सास ता-जिन्दगी साथ नहीं रहेंगी, लेकिन जब तक साथ है, बहू उनके साथ प्रेमपूर्वक रहेंगी, सखी-भाव रखेंगी तो उनके जाने के बाद वो यादें आपको पॉजिटिविटी प्रदान करेंगी, कड़वाहट से नहीं भरेंगी।

सास के प्रति किया दुर्व्यवहार ऐसे अपराध-बोध से भर देता है कि आप खुद अपना सामना करने की हिम्मत नहीं कर पायेंगी। ऐसी जिन्दगी एक मुकम्मल जिंदगी हरगिज न होगी चाहे आपके पास कितना भी धन-दौलत, पावर, भौतिक ऐशोआराम क्यों न हो।

सखियां तो आपको बहुत मिलेंगी लेकिन सास जैसी ईमानदार, निश्छल, भला चाहने वाली सच्ची सखी शायद ही मिले! यहां जो तार जुड़े हैं, वे अटूट हैं।

सास को अपना बेटा प्राणों से ज्यादा प्यारा है और उसके बेटे का आप जीवन हैं। इसलिए यह जरूरी समझें और अपनी ना-समझी, नादानी व हठधर्मिता के कारण इसे अनदेखा करते हुए अपने तथा अपने परिवार को खुशियों से महरूम न करें।
– उषा जैन ‘शीरीं’

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